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शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव क्यों होता है?
जब किसी कंपनी के शेयरों को खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों, तो शेयरों का भाव बढ़ जाता है
अब हम आपको बताते हैं कि किस वजह से शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आता है और शेयरों के भाव चढ़ते-गिरते हैं:
आम समझ यह है कि जब किसी कंपनी के शेयरों को खरीदने वाले लोग अधिक हों और उसके कम स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? शेयर बिक्री के लिए उपलब्ध हों, तो शेयरों का भाव बढ़ जाता है. इसके साथ ही कई अन्य वजहें भी हैं, जिनकी वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव आता है.
यदि दो देशों के बीच कारोबारी और रणनीतिक संबंध बेहतर बनने की उम्मीद हो तो अर्थव्यवस्था की तरक्की के हिसाब से निवेशक शेयर बाजार में पैसे लगाते हैं.
मसलन भारत-चीन के बीच बेहतर कारोबारी संबंध से अमेरिकी या यूरोपीय निवेशकों को भारत की ग्रोथ रेट बेहतर होने की उम्मीद बढ़ जाती है. वे भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना शुरू करते हैं.
इन कारणों का भी पड़ता है असर:
* भारत कृषि प्रधान देश है. अगर मौसम विभाग मानसून की अच्छी बारिश का अनुमान लगाता है तो शेयर बाजार में तेजी आती है. निवेशक यह अनुमान लगाते स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? हैं कि अच्छी बारिश से अनाज का ज्यादा उत्पादन होगा. मतलब यह कि कृषि आधारित उद्योग की तरक्की ज्यादा होगी.
इन उद्योग में ट्रैक्टर, खाद, बीज, कीटनाशक, बाइक एवं FMCG कंपनियां शामिल हैं. निवेशकों को लगता है कि इन कंपनियों का कारोबार स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? और मुनाफा बढ़ेगा. इनसे जुड़ी कंपनियों के शेयरों की खरीदारी बढ़ जाती है.
* यदि रिज़र्व बैंक मैद्रिक नीति की घोषणा में ब्याज दर में कमी करे तो कर्ज की दर सस्ती होगी. इससे बैंक से लोन लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी और अंत में बैंकों का लाभ बढ़ेगा. इस वजह से निवेशक बैंक एवं NBFC के शेयरों की खरीदारी करते हैं और उनके भाव में तेजी आती है.
* RBI की मौद्रिक समीक्षा (ब्याज दर में कमी या वृद्धि), सरकार की राजकोषीय नीति (कर की दरों में तेजी-नरमी), वाणिज्य नीति, औद्योगिक नीति, कृषि नीति आदि में किसी बदलाव की वजह से इन क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों के शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव होता है.
*अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बदलाव पर दुनिया स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? भर की नजरें होती हैं. निवेशक मानते हैं कि अगर अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ीं तो विदेशी निवेशक भारत जैसे बाजार से पैसे निकल कर वहां लगायेंगे. इस वजह से यहां शेयर बाजार में बिकवाली शुरू हो जाती है. इससे बाजार में कमजोरी आती है.
*अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम भी शेयरों के भाव पर असर डालते हैं. हाल में शुरू ट्रेड वार, उत्तर-कोरिया विवाद, रूस-अमेरिका विवाद की वजह से युद्ध की आशंका की वजह से निवेशक शेयर से पैसे निकाल कर सोने में निवेश करते हैं. इस वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव होता है.
* बजट पेश करने के दौरान की गयी सरकार की पॉजिटिव या निगेटिव घोषणाओं की वजह से भी शेयरों के भाव ऊपर-नीचे होते हैं.
* देश में राजनीतिक स्थिरता (बहुमत की सरकार या स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? गठबंधन की), राजनीतिक वातावरण जैसे कारण भी निवेशकों के निर्णय को काफी हद तक प्रभावित करते हैं. राज्यों के विधानसभा नतीजे भी शेयर बाजार पर असर डालते हैं. मौजूदा सरकार की जीत से उसकी नीतियों के जारी रहने का भरोसा बना रहता है, इससे निवेशक खरीदारी शुरू करते हैं जिससे बाजार में तेजी आती है.
* समूह प्रभाव (herd effect) की वजह से भी शेयर बाजार में अधिक बिकवाली या खरीदारी की जाती है. इसकी वजह कभी कोई अफवाह या गुप्त जानकारी हो सकती है. बड़ी संख्या में एक साथ बिकवाली या खरीदारी की वजह से शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव होता है. कभी-कभी शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव डर या अनिश्चितता की वजह से भी होता है.
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मल्टीबैगर और पेनी स्टॉक से आपको स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? भी कमाने हैं लाखों, जानिए अपनानी होगी कौन सी रणनीति
पिछले कुछ समय से आप सुन रहे होंगे कि कैसे बेहद सस्ते शेयर्स ने एक साल के भीतर निवेशकों को लाखों रुपए का रिटर्न दिया. एक लाख रुपए से 50 -60 लाख रुपए से भी ज़्यादा का रिटर्न मिला है। सोचा है ऐसे स्टॉक्स.
पिछले कुछ समय से आप सुन रहे होंगे कि कैसे बेहद सस्ते शेयर्स ने एक साल के भीतर निवेशकों को लाखों रुपए का रिटर्न दिया. एक लाख रुपए से 50 -60 लाख रुपए से भी ज़्यादा का रिटर्न मिला है। सोचा है ऐसे स्टॉक्स को लोग कैसे खोजते होंगे? आइए हम अप्पको बताते हैं कंपनी कि कौन सी बातें को देखकर बड़े निवेशक पैसा लगने के बारे में सोचते हैं। उनमेंसे ही कुछ स्टॉक उनको बड़ा प्रॉफिट दिलाते हैं। आप स्टॉक खरीदने के लिए सही कीमत को कैसे पहचानते हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिनसे स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? निवेशक अक्सर हैरान होते हैं, समझने कि कोशिश करते हैं-
आपकी अपनी समझ- बुद्धिमान निवेशक, आपकी समय सीमा, जोखिम सहनशीलता और विशिष्ट उद्देश्य आपको बेस्ट स्टॉक खोजने में मदद कर सकता है। अपने आसपास हो रही आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखें और अपने आंख और कान खुले रखें। इसमें "अंडरवैल्यूड स्टॉक" की पहचान करना शामिल है जो किसी भी कारण से अपनी वैल्यू से काफी कम कम मूल्य पर होगा।
अर्थव्यवस्था के संकेत- अच्छे स्टॉक चुनने का एक बेहतरीन तरीका है कि आप अर्थव्यवस्था के हालात पर नजर बनाए रखें। भविष्य में आने वाली टेक्नोलॉजी या इंडस्ट्री के बारे में आभास लगा सकें। ट्रेंड से बाहर हो रहे उद्योगों में पैसा लगाने से बच सकें।
शेयर बाजार के अंडरडॉग्स- कुछ गैर-लोकप्रिय कंपनियां बिक्री और मुनाफे में वृद्धि दिखाती हैं, लेकिन उनके शेयर की कीमतें नहीं बढ़ती हैं। ये कंपनियां व्यापारियों और निवेशकों द्वारा समान रूप से ध्यान नहीं देती हैं और इसलिए उनके स्टॉक उनके प्रदर्शन की वृद्धि के बावजूद सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हैं। इसलिए, यदि किसी कंपनी ने पिछली तीन तिमाहियों में लाभ में 20% की वृद्धि की है, लेकिन स्टॉक की कीमत बिल्कुल नहीं बढ़ी है या केवल 1-10% की वृद्धि हुई है, तो यह एक अंडरवैल्यूड स्टॉक है। इनके बारे में रिसर्च करिए।
पी/ई का कम अनुपात: पी/ई से स्टॉक के मौजूदा शेयर मूल्य के रूप में की जाती है। पीई अनुपात निवेशकों के लिए निवेश निर्णयों को आधार बनाने के लिए एक प्रभावी निर्धारण कारक रहा है। अगर पीई अनुपात अधिक होता है, तो निवेशक यह मानते हैं कि स्टॉक ओवरवैल्यूड है और शेयरों को बेचना या खरीदने से बचना चाहिए। यदि शेयर का अंडरवैल्यूड होत है, तो निवेशक उन्हें अयोग्य मूल्य का दोहन होने पर मुनाफे का दावा करने के लिए कम दरों पर खरीदते हैं।
अपने ही सेक्टर कि कंपनियों से पीछे होना- एक कंपनी के शेयर की कीमत कई कारणों से उसी सेक्टर कि दूसरी कंपनियों के तुलना में कम हो सकती है। कीमत कभी-कभी इतनी कम हो जाती है कि स्टॉक का मूल्यांकन कम हो जाता है। आप एक विकल्प के लिए अपने स्क्रीनर की जांच कर सकते हैं जो आपको अलग-अलग स्टॉक और स्टॉक इंडेक्स के मुकाबले अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्टॉक मूल्य इतिहास की तुलना करने देता है। अगर कंपनी कि वित्तीय स्थिति काफी मजबूत है लेकिन प्राइस कम है तो इनको नज़र में रखिए।
कीमत/आय ग्रोथ (पीईजी) का कम अनुपात: पी/ई की तुलना में पीएईजी को अधिक सटीक माना जाता है, पीईजी एक स्टॉक की कीमत, प्रति शेयर आय (ईपीएस) और के बीच कई पैरामीटर पर उनका मूल्यांकन करने का टूल है। यदि अनुपात 1 से कम है (उदाहरण के लिए, 10 का पी/ई और 15% की अनुमानित वृद्धि, तो हमें पीईजी अनुपात 0.66), तो यह अच्छा है। लेकिन इस बात को ध्यान में रखें ये भी अनुमान हैं। रिसर्च और करें।
डिविडेंड यील्ड- इसको अधिकांश निवेशक अनदेखा करते हैं - यदि किसी कंपनी के डिविडेंड भुगतान की दर उनके प्रतिस्पर्धियों से अधिक है, तो यह संकेत है कि शेयर अंडरवैल्यूड हो सकता हैं। सोचें अगर कंपनी वित्तीय रूप से अस्थिर नहीं है और भविष्य में कोई रिस्क नहीं तो स्टॉक की कीमत में बढ़ोतरी की संभावना है।
मार्केट-टू-बुक रेशियो: मार्केट टू बुक रेशियो (जिसे प्राइस टू बुक रेशियो भी कहा जाता है), एक वित्तीय वैल्यूएशन मेट्रिक है जिसका इस्तेमाल कंपनी के बुक वैल्यू के सापेक्ष मौजूदा मार्केट वैल्यू का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग किसी फर्म की मार्केट कैपिटलाइजेशन की उसकी बुक वैल्यू के साथ तुलना करने के लिए होता है। पी/बी रेशियो किसी कंपनी की मार्केट वैल्युएशन की माप की उसकी बुक वैल्यू की तुलना में माप करता है। किसी इक्विटी की मार्केट वैल्यू पारंपरिक रूप से कंपनी की बुक वैल्यू से ऊंची होती है। पी/बी रेशियो का उपयोग वैल्यू इन्वेस्टरों द्वारा संभावित निवेशों की पहचान करने के लिए किया जाता है। 1 से नीचे के पी/बी रेशियो ठोस निवेश समझे जाते हैं।
हालांकि, ध्यान रखें कि सिर्फ ये मेट्रिक्स ही सभी पैरामीटर नहीं हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि स्टॉक बेहतरीन निवेश हो स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? सकता है। लेकिन हां ये आपको स्टॉक का मूल्यांकन करने में मददगार साबित होंगे। किसी कंपनी के बारे में अधिकतम रिसर्च आपको मल्टीबैगर स्टॉक खोजने में माद्दा करेगा और आपको लाखों रुपए का रिटर्न दे सकता है।
गेहूं, चावल की कीमतों में बढ़ोतरी सामान्य बात, असामान्य तेजी पर कदम उठाएंगे: खाद्य सचिव
नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) सरकार ने सोमवार को कहा कि गेहूं और चावल की कीमतों में वृद्धि ‘सामान्य’ है और यदि अनाज की कीमतों में कोई असामान्य वृद्धि होती है तो वह बाजार में हस्तक्षेप करेगी। खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने संवाददाता सम्मेलन यह भी कहा कि सरकार के पास अपने गोदामों में गेहूं और चावल दोनों का अधिशेष स्टॉक है, जिसका उपयोग बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए किया जाएगा। पांडे ने कहा, ‘‘कीमतों में वृद्धि कोई असामान्य बात नहीं है. ।’’
खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने संवाददाता सम्मेलन यह भी कहा कि सरकार के पास अपने गोदामों में गेहूं और चावल दोनों का अधिशेष स्टॉक है, जिसका उपयोग बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए किया जाएगा।
पांडे ने कहा, ‘‘कीमतों में वृद्धि कोई असामान्य बात नहीं है. ।’’
उन्होंने गेहूं का उदाहरण देते हुए कहा कि कीमतों में वृद्धि सामान्य है क्योंकि पिछले साल थोक कीमतों में गिरावट आई थी जब सरकार ने अपनी खुली बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत थोक उपभोक्ताओं को भारी मात्रा में अनाज बेचे थे।
पांडे ने कहा कि गेहूं की थोक कीमत 14 अक्टूबर, 2021 को 2,331 रुपये प्रति क्विंटल थी, जबकि वर्ष 2020 में इसी दिन यह कीमत 2,474 रुपये प्रति क्विंटल थी।
पांडे ने कहा, ‘‘इसलिए, पिछले स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? साल से चालू वर्ष में गेहूं कीमतों में हुई वृद्धि की तुलना करना उचित नहीं है। इसकी तुलना वर्ष 2020 में प्रचलित कीमतों के साथ की जानी चाहिए।’’
वर्ष 2020 की कीमतों की तुलना में, इस साल 14 अक्टूबर को थोक गेहूं की कीमतों में 11.42 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2,757 रुपये प्रति क्विंटल रही। खुदरा गेहूं की कीमतों में 12.01 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 31.06 रुपये प्रति किलोग्राम रही।
सचिव ने कहा कि यह वृद्धि न्यूनतम समर्थन मूल्य, ईंधन और परिवहन और अन्य खर्चों में वृद्धि के अनुरूप है।’’
उन्होंने कहा कि अभी चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि सरकार के पास अपने गोदामों में गेहूं और चावल दोनों का संतोषजनक भंडार है। इसका कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए सरकार की ओर से जरुरत के मुकाबले अधिक खरीद किया जाना है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अध्यक्ष अशोक के के मीणा ने अपनी प्रस्तुति में कहा, ‘‘सरकार के पास एक अक्टूबर तक 205 लाख टन के बफर मानदंड स्टॉक की कीमतों में क्या वृद्धि होती है? के मुकाबले गेहूं का भंडार 227 लाख टन था। इसी तरह, इस अवधि में 103 लाख टन के बफर मानदंड के मुकाबले चावल का स्टॉक 205 लाख टन था।’’
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और अन्य कल्याणकारी आवश्यकताओं के लिए मुफ्त अनाज की आपूर्ति के बाद भी एक अप्रैल, 2023 तक गेहूं और चावल का अनुमानित स्टॉक सामान्य बफर मानदंडों से बहुत अधिक होगा।
मीणा ने कहा कि सरकार पूरी तरह सचेत है और नियमित रूप से आवश्यक वस्तुओं के मूल्य परिदृश्य की निगरानी कर रही है तथा आवश्यकतानुसार जरूरी कदम उठा रही है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने कीमतों में तेजी पर लगाम लगाने के लिये सक्रियता से कदम उठाए हैं। गेहूं और चावल की कीमतों में तत्काल नियंत्रण के लिए गेहूं के मामले में 13 मई से और टूटे हुए चावल के मामले में 8 मई से निर्यात पर रोक लगायी गयी है।
मीणा ने यह भी कहा कि एक अक्टूबर से शुरू हुए रबी (सर्दियों) सत्र में गेहूं का उत्पादन सामान्य रहने की उम्मीद है।
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